वह चिड़िया जो – CBSE कक्षा 6 हिंदी सारांश

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प्रस्तुत कविता 'वह चिड़िया जो है' कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने मन के भीतर कल्पित चिड़िया के माध्यम से मनुष्य के महत्त्वपूर्ण गुणों को उजागर किया है। 


इस कविता में लेखक ने नीले पंखों वाली एक छोटी सी संतोषी चिड़िया के बारे में बता रहे हैं। उस नन्हीं सी चिड़िया को प्रकृति की हर वस्तु से अत्यंत लगाव है। कवि कहते हैं कि नीले रंग की छोटी चिड़िया को अन्न से बहुत प्यार है। वह बहुत ही रुचि और संतोष के साथ दूध भरे ज्वार के दाने खाती है। उसे अपने वन से भी बहुत प्यार है। वह बूढ़े वन में घूम-घूम कर अपने मीठे स्वर में वृक्षों के लिए प्यारे गीत गाती है। उसे एकांत और नदी से बहुत प्यार है। वह अत्यंत साहस के साथ उफनती नदी में से अपनी चोंच में पानी की बूँदें भर लाती है। 


भावार्थ 

वह चिड़िया जो-

चोंच मार कर 

दूध-भरे जुडी के दाने 

रुचि से, रस से खा लेती है 

वह छोटी संतोषी चिड़िया 

नीले पंखोंवाली मैं हूँ 

मुझे अन्न से बहुत प्यार है। 


नए शब्द/कठिन शब्द 

जुंडी- ज्वार की बाली 

रूचि से चाव से 


भावार्थ- 

प्रस्तुत पक्तियों में कवि एक नीले पंखों वाली छोटी चिड़िया का उल्लेख करते हुए बता रहे हैं कि यह चिड़िया बहुत ही संतोषी है तथा उसे अन्न से बहुत प्यार है। वह दूध से भरे ज्वार के दानों को बहुत ही रुचि से और रस लेकर खाती है, अर्थात कवि इस पद के माध्यम से स्वयं के संतोषी होने तथा अन्न के महत्त्व के बारे में बता रहे हैं। 


वह चिड़िया जो-

कंठ खोलकर 

बूढ़े वन-बाबा की ख़ातिर 

रस उड़ेल कर गा लेती है 

वह छोटी मुँह बोली चिड़िया 

नीले पंखोंवाली मैं हूँ 

मुझे विजन से बहुत प्यार है। 


नए शब्द/कठिन शब्द 

कंठ- गला 

बूढ़े वन-बाबा- पुराना घना वन 

विजन-एकांत 


भावार्थ

प्रस्तुत पक्तियों में कवि नन्हीं चिड़िया के बारे में बता रहे हैं कि इस नन्ही चिड़िया को उस वन से भी बहुत प्यार है जिसमें वह रहती है तथा अपने बूढ़े वन बाबा और उसके वृक्षों के लिए वह अपने मीठे कंठ से मधुर और सुरीला गीत गाती है। उसे एकांत में रहना पसंद है तथा वह प्रकृति के साथ इस गीत का अकेले में आनंद लेना चाहती है। यहाँ पर कवि प्रकृति से प्यार और एकांत से भी उमंग में रहने के बारे में बता रहे हैं। 


वह चिड़िया जो-

चर्चोंच मार कर 

चढ़ी नदी का दिल टटोल कर 

जल का मोती ले जाती है 

वह छोटी गरबीली चिड़िया 

नीले पंखोंवाली मैं हूँ 

मुझे नदी से बहुत प्यार है। 


नए शब्द/कठिन शब्द 

चढ़ी नदी जल से भरी 

दिल टटोलकर बीच से 

जल का मोती- पानी की बूँदै 

गरबीली- गर्व करने वाली 


भावार्थ 

अंतिम पद में कवि कहना चाहते हैं कि यह नीले पंखों वाली छोटी सी चिड़िया अत्यंत साहसी और गर्व से भरी हुई है क्योंकि यह चिड़िया छोटी होने के बाद भी उफनती हुई नदी के ऊपर से जल रूपी मोती ले आती है अर्थात जल से अपनी प्यास बुझा लेती है और नदी से और उसके जल से भी बहुत प्यार करती है यहाँ पर कवि मनुष्य के साहस के गुणों के बारे में बता रहे हैं। 


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