प्रस्तुत निबंध में लेखिका ने महात्मा गांधी के सिद्धांतों का वर्णन किया है। प्रस्तुत पाठ में लेखिका बताती है कि आम तौर पर नौकरों चाकरों द्वारा किये जाने वाले काम गांधीजी स्वयं ही कर लिया करते थे। गांधीजी किसी भी कार्य को करने में झिझकते नहीं थे। बल्कि दूसरों को भी अपने हाथ से कार्य करने के लिए प्रेरित करते रहते थे।
गांधीजी जिस समय बैरिस्टरी से हजारों रुपए कमाते थे तब भी प्रतिदिन अपने से हाथ से चक्की से आटा पीसते थे। एक बार कॉलेज के कुछ छात्र उनसे मिलने आए और उनसे कुछ सेवा के विषय में कहने लगे। गांधीजी ने उन छात्रों को गेहूँ साफ करने दिया। वे एक घंटे में ही थक गए और गांधीजी से विदा लेकर चल दिए।
गांधीजी ने कुछ वर्षों तक आश्रम के भंडार का भी काम भी सँभाला। उन्हें सब्जी, फल और अनाज के पौष्टिक गुणों का ज्ञान था। गांधीजी आश्रमवासियों को स्वयं भोजन परोसते थे। गांधीजी के परोसने के कारण सभी को बेस्वाद, उबली हुई सब्जियाँ बिना किसी शिकायत के खानी पड़ती थी। गांधीजी को चमकते हुए बर्तन पसंद थे।
आश्रम में चक्की पीसने और कुएँ से पानी निकालने का का काम रोज करते थे। उन्हें यह नहीं पसंद नहीं था कि जब तक शरीर में लाचारी न हो तब तक कोई उनका काम करे। उनमें हर प्रकार का कार्य करने की अद्भुत क्षमता थी। दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध के दौरान उन्होंने घायलों को स्ट्रेचर पर लाद कर पच्चीस-पच्चीस मिल तक ढोया है। एक बार किसी तालाब में भराई का काम चल रहा था। जब वे लौटकर आए तो उन्होंने देखा की गांधीजी उनके लिए नाश्ते के लिए फल आदि तैयार करके खड़े रखे हुए थे।
एक बार गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों की माँग को लेकर लंदन गए। वहाँ के भारतीय छात्रों ने उन्हें शाकाहारी भोज के लिए आमंत्रित किया। वे लोग स्वयं उनके लिए भोजन बनाने लगे। तीसरे पहर एक दुबला-पतला व्यक्ति भी उनमें शामिल होकर काम करने लगा। बाद में छात्रों को पता चला कि वह दुबला-पतला व्यक्ति और कोई नहीं गांधीजी ही थे।
काम के मामले में गांधीजी बहुत सख्त थे परन्तु अपना काम किसी और से करवाना उन्हें नापसंद था। एक दिन राजनैतिक सम्मलेन से रात दस बजे लौटकर भी वह अपना कमरा साफ करने लगे। गांधीजी को बच्चों से बहुत अधिक प्यार था। उनका मानना था कि बच्चों के विकास के लिए माता-पिता का प्यार और उनकी देखभाल अनिवार्य है।
अफ्रीका में जेल से छूटने के बाद उन्होंने देखा कि उनके मित्र की पत्नी बहुत ही कमजोर और दुबली हो गई थी। क्योंकि बहुत प्रयत्नों के बाद भी उनका बालक उनका दूध पीना नहीं छोड़ रहा था। गांधीजी ने एक महीने तक उस बच्चे को अपने पास सुलाया। रात के लिए वे अपनी चारपाई के पास पानी रख कर सोते थे। इस प्रकार से उन्होंने बच्चे का दूध पीना छुड़वा दिया।
गांधीजी सदैव अपने से बड़ों का आदर करते थे। दक्षिण अफ्रीका में जब गोखलेजी गांधीजी के साथ ठहरे थे तब गांधीजी स्वयं ही उनके सारे कार्य करते थे। आश्रम में यदि किसी को रखने की आवश्यकता होती तो वे किसी हरिजन को रखने का ही आग्रह करते। उनके अनुसार नौकरों को हमें वेतनभोगी मजदूर न समझकर अपने भाई समान समझना चाहिए। इसमें कुछ कठिनाइयाँ हो सकती हैं, कुछ चोरियाँ भी हो सकती है। फिर कोशिश बेकार नहीं जाएगी। इंग्लैण्ड में गांधीजी ने देखा कि ऊँचे घरानों में घरेलू नौकरों को परिवार के आदमी की तरह रखा जाता था।