मनोरंजन की दुनिया में लोकगीतों का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। गीत संगीत के बिना हमारा मन नीरस हो जाता है। हमारी जीवन में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। लोकगीत अपनी ताजगी और लोकप्रियता से शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। ये सीधे जनता का संगीत हैं। ये गाँव जनता का संगीत है। इसके लिए प्रत्येक साधना की जरुरत नहीं हैं। त्योहारों, और विशेष अवसरों पर ये गीत गाये जाते है। ये गीत बाजों, ढोलक, करताल, बाँसुरी, आदि की मदद से गाये जाते हैं।
लोकगीत कई प्रकार के होते हैं। इनका एक एक प्रकार बहुत सजीव हैं। यह इस देश का आदिवासियों का संगीत हैं। पूरे देश भर ये फैले हुए है। अलग अलग राज्यों में, अलग-अलग भाषाओं में रग्बी रंगी फूलों की माला की तरह ये बने है। सभी लोकगीत गाँवों की बोलियों में गाये जाते हैं। चैता, कजरी, बारहमास, सावन आदि उत्तरप्रदेश और बनारस में गाये जाते हैं। बोउल, भटियाली, बंगला के लोकगीत हैं। राजस्थान में ढोलामारू, भोजपुर में बिदेशियाँ प्रसिद्ध है। एक दूसरों को जवाब के रूप में दल में बाँटके भी ये गीत गाया जा सकता है। गाने के साथ नाचना भी होता है।