प्रस्तुत कविता में तुलसीदास जी ने तब का प्रसंग बताया है, जब श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी वनवास के लिए निकले थे। नगर से थोड़ी दूर निकलते ही सीता जी थक गईं, उनके माथे पर पसीना छलक आया और उनके होंठ सूखने लगे। जब लक्ष्मण जी पानी लेने जाते हैं, तो उस दशा में भी वे श्री राम से पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए कहती हैं। राम जी उनकी इस दशा को देखकर व्याकुल हो उठते हैं और सीता जी के पैरों में लगे काँटे निकालने लगते हैं। यह देखकर सीता जी मन ही मन अपने पति के प्यार को देखकर पुलकित होने लगती हैं।
भावार्थ
पुर तें निकर्सी रघुबीर बधू, धरि धीर दए मग में डग वै।
झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, "चलनो अब केतिक, पर्नकुटि करिहों कित हवै?
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
नए शब्द/कठिन शब्द
पुर- नगर
निकासी निकली
रघुवीर वधु- सीताजी
मग रास्ता
डग- कदम
ससकी- दिहाई दी
भाल- मस्तक
कनी- बूँदें
पुट- ओंठ
केतिक- कितना
पर्णकुटी- पत्तों से बनी कुटी
कित- कहाँ
तिय- पत्नी
चारु- सुन्दर
च्वै- गिरना
भावार्थ-
प्रथम पद में तुलसीदास जी लिखते हैं कि श्री राम जी के साथ उनकी वधू अर्थात् सीता जी अभी नगर से बाहर निकली ही हैं कि उनके माथे पर पसीना चमकने लगा है। इसी के साथ-साथ उनके मधुर होंठ भी प्यास से सूखने लगे हैं। अब वे श्री राम जी से पूछती हैं कि हमें अब पर्णकुटी (घास-फूस की झोंपड़ी) कहाँ बनानी है। उनकी इस परेशानी को देखकर राम जी भी व्याकुल हो जाते हैं और उनकी आँखों से आँसू छलकने लगते हैं।
जल को गए लवंग, हैं लरिकन परिखैं, पिया छांड़ि धरिक भए ठाढ़।।
पानि परइ छमारी करसि, अरु पाय पछारिहि, मधुरी डारि।।
तुलसी सुधरि शियामस जमि के बैठि बिलखि लौ कटकि बाढ़े।
जानकी नाथ को मोर लखन, पुलको तनु, बारिष बिलोकनि बाढ़े।।
नए शब्द/कठिन शब्द
लरिका- लड़का
परिखौ- प्रतीक्षा करना
घरिक- एक घड़ी समय
ठाढ़े- खड़ा होना
पसेउ- पसीना
बयारि- हवा
पखारिहों- धोना
भूभुरि- गर्म रेत
कंटक- कॉटे
काढना- निकालना
नाह- स्वामी
नेहु- प्रेम
लख्यो - देखकर
वारि- पानी
भावार्थ-
इस पद में श्री लक्ष्मण जी पानी लेने जाते हैं, तो सीता जी श्री राम से कहती हैं कि स्वामी आप थक गए होंगे, अतः पेड़ की छाया में थोड़ा विश्राम कर लीजिए। श्री राम जी उनकी इस व्याकुलता को देखकर कुछ देर पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं तथा फिर सीता जी के पैरों से काँटे निकालने लगते हैं। अपने प्रियतम के इस प्यार को देखकर सीता जी मन ही मन पुलकित यानि खुश होने लगती हैं।